आप सभी का स्वागत है हमारे ब्लाग पर | '' युवा वैचारिक मंच '' क्या है ? यह एक तरह का चौपाल है जहा पर देश हित मे आप सभी आगन्तुक के विचारो पर चिन्तन करते है |
यह स्मरण रहे कि '' युवा वैचारिक मंच '' का अर्थ उसके विचार से है न की उम्र से है | हमारा सत्य मत है कि जो व्यक्ति निरन्तर विचार कर रहा है वह युवा है | अगर 18 वर्ष का युवक राष्ट्रहित में विचार नहीं करता है तो वह बूढा है वहीं दूसरी तरफ 90 वर्ष का व्यक्ति निरन्तर राष्ट्रहित में विचार करता है तो वह युवा है |
आज समाज की सुप्तावस्था इस स्तर पर जा चुकी है की पढे- लिखे अपने को जीवित और अनपढ अपने को मृत समझने लगा है जबकि ये मत है सच्चाई नही | ऐसी शिक्षा प्रणाली का समष्टिगत विस्तार अंग्रेजो ने इसीलिए किया ताकि हम वर्षो तक गुलाम बने रहें |
संस्कृति, विज्ञान, कला व दर्शन को लेकर युवाओ के बीच वैचारिक जागरण करने के साथ ही देश के अन्य युवाओ को भी जागरुक कर रहे है | आप अपने विचार लिखकर हमसे सवाल कर सकते है | सवाल करने से पहले होम पेज को शुरू से अंत तक अवश्य पढिये |
(1) आपका सवाल देश और समाज के हित मे
होना चाहिए |
(2) हिन्दी पढने- लिखने वालो से हम विशेष रूप
से देशहित में सुझाव की अपेक्षा करते है |
(3) हमारे पृष्ठो पर दी गई सामग्री को देश हित में
उपयोग करने के लिए '' युवा वैचारिक मंच ''
को एक बार सुचित जरुर कीजिए |
(4) प्रान्त के प्रभारियों से मिलने के लिये या सूचित
करने के हेतु सम्पर्क पृष्ठ पर जायें |
(5) युवा वैचारिक मंच कोई कम्पनी नही है इसके
सदस्य नौकर नही है | हम किसी को नौकरी
पर नही रखते है न ही पैसो की अपेक्षा करते है, परन्तु हम आपके दान का स्वागत करते है |
मुद्रा एक इंडिकेटर (संसूचक) की तरह है जिससे उस देश के भू-भाग के उत्पादन एवं मुद्रा की
क्रय-शक्ति के आधार पर देश के नागरिक के चेहरे की मुद्रा का अनुभव या भौतिक सुख-दुःख का अनुमान लगाया जा सकता है ।
यह विचार करने की बात है की इस घटते रुपये की वजह से हमारा जीवन असामान्य कैसे
हुआ और कब से हुआ है यह एक बड़ा सवाल है ।
हमारा जीवन चौबीस घण्टे को आत्मसात क्यों नहीं कर पा रहा है, क्यों हमारे पास अब पर्याप्त समय नहीं है शिवाय व्यापार के, क्यों आज हर व्यक्ति पैसे के पीछे इतना तेजी से भाग रहा है । ऐसे अवैज्ञानिक
सोच की उत्पत्ति, अन्धविश्वास की शुरुआत, विज्ञानं
भ्रष्टाचार की जड़ रूपया है तो रुपये की जड़ क्या है ?
और धर्म का घाल मेल, भेड़ चाल, और ऐसे कई न जाने कितने विषय ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली से संचालित रुपये में
दिखाई दिए, हमारे समाज में विज्ञानं को अवैज्ञानिक
बातों के साथ खिचड़ी पका कर अब तक हम नागरिक को किस प्रकार दिग्भ्रमित किया गया यह
हम आगे समझेंगे ..... फिर हाल यह समझना आवश्यक है कि गड़बड़ पैसे में है या
हम इंसान में, क्या पैसा इतनी तेजी से भाग-भाग कर ही
कमाया जाता है, क्या यही तरीका है पैसा कमाने का, क्या हम मनुष्यों का जीवन बना ही है पैसा कमाने के लिए । आखिर हमारा
लक्ष्य क्या है ।
पहले साइकल फिर मोटर साइकिल इसके बाद कार फिर सुपरफास्ट ट्रेन और तो और अब
बुलेट की तयारी है इसमें सबसे आश्चर्यजनक तथ्य
जो है वह यह कि ये इंसान इतना तेजी से आखिर जाना कहाँ
चाहता है ?
प्रो. जे. के. मेहता कहते हैं - वे
समस्त प्राकृतिक उपादान जिनका प्रयोग आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उत्पादन के
सन्दर्भ में किया जाता है भूमि कहलाती है ।
इसी सन्दर्भ में प्रो. स्मिथ एवं पैटरसन कहते हैं - मनुष्य पदार्थ का सृजन
नहीं करता, केवल प्रकृति ही पदार्थ बना सकती है ।
मनुष्य प्रकृति प्रदत्त पदार्थों को लेकर उनका रूप इस प्रकार बदल देता है कि उसके
लिये अधिक उपयोगी हो सके ।
मनुष्य को धन संचय करना तब अनिवार्य हो जाता जब धन के मूल महत्व को समझना और
समझाना मुश्किल होने लगे क्यूँकि गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने
बताया है की धन की प्रकृति जल के समान है यह स्वतः अपने स्थान ग्रहण करती है ।
प्रकृति ने सम्पूर्ण आवश्यकताओं की कर के ही पृथ्वी के
संतुलन को स्थापित किया है इसके अलावा कुरान, गीता और
बाइबिल ये सभी संतुलन की बात करते हैं ।
भारत
की धर्म, काम व
मोक्ष नमक चार स्तम्भों पर टिकी उस प्राचीन सभ्यता के लोगों को बहुत पहले से
स्पष्ट था की जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है, तो उसी
अनुसार देश के ऋषि मुनियों ने हजारों सालों के तप के आधार पर एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया की जहाँ लोग धर्म को
धारण कर सकें । और पूरी व्यवस्था में धर्मगुरु ही अंतिम केन्द्र बिंदु थे और
राजा उनके प्रतिनिधि के रूप में जनता के बीच में थे लेकिन कुछ ऐसे लोग जिनके लिए
भौतिक सुख ही अंतिम लक्ष्य था, ने अपनी धूर्तता और कुटिल
बुद्धि से विश्व की प्राकृतिक सम्पदाओं को लूटने के लिए कुछ षड़यंत्रकारी नीतियों
का निर्माण किया । अर्थ किसी भी सभ्यता का मूल
होता है और हम दुनिया की जीडीपी का 33 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते थे और विश्व व्यापार का केन्द्र भी थे इसीलिए विश्वगुरु
और सोने की चिड़िया कहलाते थे । हमारी व्यवस्थाओं का बारीकी
से अध्ययन कर के व्यापार के माध्यम से आई ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में अपना
सिक्का जारी कर दिया और वक्त की मार ऐसी पड़ी कि राजा और धर्म गुरु भी षड़यन्त्र को
समझने में चूक गए । अर्थ को अपने हाथों में लेकर
उन्होंने हमारी पूरी व्यस्थाओं को ध्वस्त कर दिया, जहाँ 1835 में कांग्रेस की स्थापना करा कर एक नई राज
व्यवस्था की ओर इशारा कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप हम देखते हैं कि 1945 में के बाद बहुत थोड़े से अंतराल में
अंग्रेजों ने 09 देशों में
आज़ादी दी और उनकी राज व्यवस्था को समाप्त कर अपनी नई अंग्रेजी राज व्यवस्था का
निर्माण किया जिसको स्थाई रूप से बनाने का काम भारत में
आईपीसी 1935 के
आधार पर अभारतीय संविधान बना कर दिया गया । हमारी प्राकृतिक सम्पदाओं की लूट बराबर
जारी रखने के लिए 1934 में
आरबीआई की स्थापना की और इन सभी व्यस्थाओं को आज तक ज्यों का त्यों वो अपनी ही
पार्टी नामक विदेशी संस्थाओं के जरिये चला रहे हैं और हमारे नीति नियंता सिर्फ
तमाशा देख रहे हैं। एक तरफ हमारे उद्योग धंधों को समाप्त कर विदेशी कम्पनियों
द्वारा सम्पदा की लूट जारी है जिससे व्यवसायी दहशत में है और शेयर मार्किट के
सट्टाबाजारी के चलते किसानो को उचित समर्थन मूल्य न मिलने के कारण आत्महत्या करने
को मजबूर है । जहाँ एक तरफ बेरोजगारी के चलते युवा वर्ग अवशाद (डिप्रेशन) में है तो दूसरी तरफ उनको ड्रग्स में धकेल कर शारीरिक और
चारित्रिक रूप से कंमजोर करने की साजिश जारी है, जिससे
की आने वाली पीढ़ियां ही कमजोर हो कर ख़त्म हो जायँ । इस अर्थ व्यवस्था में जान बुझ कर रुपये के मूल्य को घटा कर लाई गयी महंगाई
और मंदी के चलते सब कुछ होते हुए भी पूरा देश ही भिखारी बन गया है । - चौधरी प्रताप सिंह चौहान
आईआईटी देश के शीर्ष शिक्षा संसथान हैं और हमारी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं जबरदस्त प्रतियोगिता के बाद यहाँ जगह बनाने में कामयाब होती हैं। लेकिन आईआईटी जैसे संस्थानों के विद्यार्थियों में भी हताशा घर कर रही है और नतीजे में खुदखुशी करने की घटनाएं एक के बाद एक सामने आ रही हैं । परन्तु अब युवा वर्ग को जागरूक करते हुए आईआईटी दिल्ली के एक मेधावी छात्र ने इन सभी परेशानियों की मूल जड़ पर अध्ययन करते हुए अपनी रिसर्च को डोर टू डोर पुरे भारत के युवाओं को जागरूक करने का फैसला लिया है आपको बता दें की देश कैसे चल रहा है, देश को चलाने वाले वो कौन लोग हैं जिनकी वजह से आज हर व्यक्ति मानव से दानव बनने को मजबूर है यह हम आपको जागरूक करने के लिए हिंदी भाषा में लिखी गयी किताब '' बैंकों का मायाजाल'' जरूर अध्ययन करें ।
यह स्मरण रहे कि '' युवा वैचारिक मंच '' का अर्थ उसके विचार से है न की उम्र से है | हमारा सत्य मत है कि जो व्यक्ति निरन्तर विचार कर रहा है वह युवा है | अगर 18 वर्ष का युवक राष्ट्रहित में विचार नहीं करता है तो वह बूढा है वहीं दूसरी तरफ 90 वर्ष का व्यक्ति निरन्तर राष्ट्रहित में विचार करता है तो वह युवा है |
आज समाज की सुप्तावस्था इस स्तर पर जा चुकी है की पढे- लिखे अपने को जीवित और अनपढ अपने को मृत समझने लगा है जबकि ये मत है सच्चाई नही | ऐसी शिक्षा प्रणाली का समष्टिगत विस्तार अंग्रेजो ने इसीलिए किया ताकि हम वर्षो तक गुलाम बने रहें |
संस्कृति, विज्ञान, कला व दर्शन को लेकर युवाओ के बीच वैचारिक जागरण करने के साथ ही देश के अन्य युवाओ को भी जागरुक कर रहे है | आप अपने विचार लिखकर हमसे सवाल कर सकते है | सवाल करने से पहले होम पेज को शुरू से अंत तक अवश्य पढिये |
(1) आपका सवाल देश और समाज के हित मे
(2) हिन्दी पढने- लिखने वालो से हम विशेष रूप
(3) हमारे पृष्ठो पर दी गई सामग्री को देश हित में
(4) प्रान्त के प्रभारियों से मिलने के लिये या सूचित
(5) युवा वैचारिक मंच कोई कम्पनी नही है इसके
सदस्य नौकर नही है | हम किसी को नौकरी
मुद्रा एक इंडिकेटर (संसूचक) की तरह है जिससे उस देश के भू-भाग के उत्पादन एवं मुद्रा की क्रय-शक्ति के आधार पर देश के नागरिक के चेहरे की मुद्रा का अनुभव या भौतिक सुख-दुःख का अनुमान लगाया जा सकता है ।
यह विचार करने की बात है की इस घटते रुपये की वजह से हमारा जीवन असामान्य कैसे
हुआ और कब से हुआ है यह एक बड़ा सवाल है ।
हमारा जीवन चौबीस घण्टे को आत्मसात क्यों नहीं कर पा रहा है, क्यों हमारे पास अब पर्याप्त समय नहीं है शिवाय व्यापार के, क्यों आज हर व्यक्ति पैसे के पीछे इतना तेजी से भाग रहा है । ऐसे अवैज्ञानिक
सोच की उत्पत्ति, अन्धविश्वास की शुरुआत, विज्ञानं
भ्रष्टाचार की जड़ रूपया है तो रुपये की जड़ क्या है ? |
और धर्म का घाल मेल, भेड़ चाल, और ऐसे कई न जाने कितने विषय ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली से संचालित रुपये में
दिखाई दिए, हमारे समाज में विज्ञानं को अवैज्ञानिक
बातों के साथ खिचड़ी पका कर अब तक हम नागरिक को किस प्रकार दिग्भ्रमित किया गया यह
हम आगे समझेंगे ..... फिर हाल यह समझना आवश्यक है कि गड़बड़ पैसे में है या
हम इंसान में, क्या पैसा इतनी तेजी से भाग-भाग कर ही
कमाया जाता है, क्या यही तरीका है पैसा कमाने का, क्या हम मनुष्यों का जीवन बना ही है पैसा कमाने के लिए । आखिर हमारा
लक्ष्य क्या है ।
पहले साइकल फिर मोटर साइकिल इसके बाद कार फिर सुपरफास्ट ट्रेन और तो और अब
बुलेट की तयारी है इसमें सबसे आश्चर्यजनक तथ्य
जो है वह यह कि ये इंसान इतना तेजी से आखिर जाना कहाँ
चाहता है ?
प्रो. जे. के. मेहता कहते हैं - वे
समस्त प्राकृतिक उपादान जिनका प्रयोग आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उत्पादन के
सन्दर्भ में किया जाता है भूमि कहलाती है ।
इसी सन्दर्भ में प्रो. स्मिथ एवं पैटरसन कहते हैं - मनुष्य पदार्थ का सृजन नहीं करता, केवल प्रकृति ही पदार्थ बना सकती है । मनुष्य प्रकृति प्रदत्त पदार्थों को लेकर उनका रूप इस प्रकार बदल देता है कि उसके लिये अधिक उपयोगी हो सके ।
इसी सन्दर्भ में प्रो. स्मिथ एवं पैटरसन कहते हैं - मनुष्य पदार्थ का सृजन नहीं करता, केवल प्रकृति ही पदार्थ बना सकती है । मनुष्य प्रकृति प्रदत्त पदार्थों को लेकर उनका रूप इस प्रकार बदल देता है कि उसके लिये अधिक उपयोगी हो सके ।
मनुष्य को धन संचय करना तब अनिवार्य हो जाता जब धन के मूल महत्व को समझना और
समझाना मुश्किल होने लगे क्यूँकि गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने
बताया है की धन की प्रकृति जल के समान है यह स्वतः अपने स्थान ग्रहण करती है ।
प्रकृति ने सम्पूर्ण आवश्यकताओं की कर के ही पृथ्वी के
संतुलन को स्थापित किया है इसके अलावा कुरान, गीता और
बाइबिल ये सभी संतुलन की बात करते हैं ।
धारण कर सकें । और पूरी व्यवस्था में धर्मगुरु ही अंतिम केन्द्र बिंदु थे और
राजा उनके प्रतिनिधि के रूप में जनता के बीच में थे लेकिन कुछ ऐसे लोग जिनके लिए
भौतिक सुख ही अंतिम लक्ष्य था, ने अपनी धूर्तता और कुटिल
बुद्धि से विश्व की प्राकृतिक सम्पदाओं को लूटने के लिए कुछ षड़यंत्रकारी नीतियों
का निर्माण किया । अर्थ किसी भी सभ्यता का मूल
होता है और हम दुनिया की जीडीपी का 33 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते थे और विश्व व्यापार का केन्द्र भी थे इसीलिए विश्वगुरु
और सोने की चिड़िया कहलाते थे । हमारी व्यवस्थाओं का बारीकी
से अध्ययन कर के व्यापार के माध्यम से आई ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में अपना
सिक्का जारी कर दिया और वक्त की मार ऐसी पड़ी कि राजा और धर्म गुरु भी षड़यन्त्र को
समझने में चूक गए । अर्थ को अपने हाथों में लेकर
उन्होंने हमारी पूरी व्यस्थाओं को ध्वस्त कर दिया, जहाँ 1835 में कांग्रेस की स्थापना करा कर एक नई राज
व्यवस्था की ओर इशारा कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप हम देखते हैं कि 1945 में के बाद बहुत थोड़े से अंतराल में
अंग्रेजों ने 09 देशों में
आज़ादी दी और उनकी राज व्यवस्था को समाप्त कर अपनी नई अंग्रेजी राज व्यवस्था का
निर्माण किया जिसको स्थाई रूप से बनाने का काम भारत में
आईपीसी 1935 के
आधार पर अभारतीय संविधान बना कर दिया गया । हमारी प्राकृतिक सम्पदाओं की लूट बराबर
जारी रखने के लिए 1934 में
आरबीआई की स्थापना की और इन सभी व्यस्थाओं को आज तक ज्यों का त्यों वो अपनी ही
पार्टी नामक विदेशी संस्थाओं के जरिये चला रहे हैं और हमारे नीति नियंता सिर्फ
तमाशा देख रहे हैं। एक तरफ हमारे उद्योग धंधों को समाप्त कर विदेशी कम्पनियों
द्वारा सम्पदा की लूट जारी है जिससे व्यवसायी दहशत में है और शेयर मार्किट के
सट्टाबाजारी के चलते किसानो को उचित समर्थन मूल्य न मिलने के कारण आत्महत्या करने
को मजबूर है । जहाँ एक तरफ बेरोजगारी के चलते युवा वर्ग अवशाद (डिप्रेशन) में है तो दूसरी तरफ उनको ड्रग्स में धकेल कर शारीरिक और
चारित्रिक रूप से कंमजोर करने की साजिश जारी है, जिससे
की आने वाली पीढ़ियां ही कमजोर हो कर ख़त्म हो जायँ । इस अर्थ व्यवस्था में जान बुझ कर रुपये के मूल्य को घटा कर लाई गयी महंगाई
और मंदी के चलते सब कुछ होते हुए भी पूरा देश ही भिखारी बन गया है । - चौधरी प्रताप सिंह चौहान
आईआईटी देश के शीर्ष शिक्षा संसथान हैं और हमारी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं जबरदस्त प्रतियोगिता के बाद यहाँ जगह बनाने में कामयाब होती हैं। लेकिन आईआईटी जैसे संस्थानों के विद्यार्थियों में भी हताशा घर कर रही है और नतीजे में खुदखुशी करने की घटनाएं एक के बाद एक सामने आ रही हैं । परन्तु अब युवा वर्ग को जागरूक करते हुए आईआईटी दिल्ली के एक मेधावी छात्र ने इन सभी परेशानियों की मूल जड़ पर अध्ययन करते हुए अपनी रिसर्च को डोर टू डोर पुरे भारत के युवाओं को जागरूक करने का फैसला लिया है आपको बता दें की देश कैसे चल रहा है, देश को चलाने वाले वो कौन लोग हैं जिनकी वजह से आज हर व्यक्ति मानव से दानव बनने को मजबूर है यह हम आपको जागरूक करने के लिए हिंदी भाषा में लिखी गयी किताब '' बैंकों का मायाजाल'' जरूर अध्ययन करें ।