हमारा लक्ष्य

देश के 54 करोड़ युवाओं पर पूरा भरोसा हैक्योंकि यही हमारी राष्ट्रीय शक्ति है । हमारे पास प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के साथ एक सुनियोजित खाका भी है । 54 करोड़ युवाओं के विचारों की एकता निश्चय ही भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदल देगा । इसी उद्देश्य को लेकर सामाजिकवैचारिक युवाओं के लिए अब धर्म और राजनीति पर हावी होते अर्थ पर बनाया गया वैचारिक चिंतन मंच जहाँ भारत का हर युवा आमंत्रित है । 

युवा का मतलब है नूतन विचारऊर्जाशक्ति तथा साहस। युवाओं में अन्याय को चुनौती देने का साहस तथा समाज व राष्ट्र में परिवर्तन लाने की शक्ति भी है ।

The problem as to how free india will get the money required for her big schemes is an important one. Britan has robbed india for her gold and silver and what little still remains, will certainly be removed, be for the British leave the country. India's national economy will naturally, have to discard the gold standard and accept the doctrine that national wealth depends on labour and production and not on gold. Foreign trade will have to be brought under state control and organized on the principle of barter (exchange of goods) as germany had done since 1933.कारण
कार्य कारण का गहरा सम्बन्ध है । कार्य होगा तो उस का कारण भी अवश्य ही होगा । देश में अराजकता, अनीति, अव्यवस्था है । राजनीति बहुत ही निकृष्ट स्तर की हो गई है । प्रातः काल की दिनचर्या समाचार पत्रों से होती है । ये समाचार पत्र मुख्य पृष्ठ से अंतिम तक अनाचार और आपराधिक घटनाओं से भरे मिलते है । सब ओर लूट मची है । कहीं चोरियां हो रही हैं, राह चलती स्त्रियों के गलों की जंजीरें झपटी जा रही हैं, बलात्कार हो रहे हैं । बेटियां न गर्भ में, न ही सड़क पर सुरक्षित हैं । प्रायः राजनेता भी भ्रष्ट्राचार के आकंठ में डूबे हुए हैं  तो धार्मिक संस्थाएं भी अछूती नही रही हैं । शिक्षा, चिकित्सा, न्याय जैसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले व्यवसाय भी भ्रष्टाचार की लपेट में हैं । अब अमानवीयता और पैशाकिता की घटनाएँ सीमा को लांघ रही हैं । प्रतिदिन न जाने कितनी ही मासूम सी बच्चियां इन दरिंदो का शिकार बन रही हैं और एक आध मीडिया की पकड़ में आता है तो राज नेता केवल सहानुभूति, कड़े-से कड़े क़ानून बनाने और दोषियों को कड़ी सज़ा दिलवाने का आश्वासन दे कर कर्त्तव्य पूर्ति या खाना पूर्ति कर लेते हैं । कुकर्म और दुष्कर्म आखिर हो क्यों रहे हैं, कहीं ऐसा तो नहीं ये सभी उपद्रव पैसे के लिए हो रहा है ? इस इस लेख में रुपये की मूल जड़ दर्शाने का प्रयास किया गया है ।  
जिस कार्य को हमें करना है इसका सूर्यास्त मूलरूप से सन 1906 से हुआ लेकिन हमारे मानव से दानव बनने का सीधा परिणाम हमारे शरीर को लागत मूल्य न मिलना है । अंग्रेज सांप ने ऐसा काटा की उसका जहर हमारे शरीर में पूरी तरह चढ़ चूका है जिसका परिणाम अब यथेष्ट रूप से देखने को मिल रहा है । एक दवा ने
जहर का रूप ले लिया जिसे लालची अंग्रेज बदल कर चले गए । यह जहर जिस गति से हमारे शरीर में प्रवेश किया वह यह की इसकी गति इतनी धीमी है कि इतनी धीमी गति से आज तक कोई जहर चढ़ा ही नहीं । जिसके फलस्वरूप इस जहर ने लगभग पुरे विश्व को मानसिक रूप से अपाहिज बना चूका है ।

इस लेख को लिखते समय जितना समय तथ्यों को एकत्रित करने में लगा है उससे अधिक समय तथ्यों को आगे पीछे करने में लगाया गया है कारण यह है कि इस आसान से परिचय (मुद्रा) को अंग्रेजों ने इतना उलझा दिया है । मतलब जिस पेन से आप लिखते हैं उसकी निप के प्वाइन्ट को ही बदल दिया गया, दूसरे शब्दों में समझें सिद्धांत को ही बदलने पर बल दिया ।  यहाँ तक कि इस दुनिया के आविष्कारकों को बदलने की पूरी- पूरी कोशिस किया साम्राज्यवादियों ने क्योंकि उस समय उनके श्रेष्ठ साम्राज्यवाद के लुप्त होने का भय था । अपने श्रेष्ठ साम्राज्यवाद को बचाने के लिए इस तरह उन्होंने ईश्वर को चुनौती दे डाली ! उनके इस रात और दिन को बदलने की सोच ने एक गलत सिद्धांत को जन्म दिया और फिर हम उसे ही यथार्थ समझ बैठे । देखते ही देखते हम उनके जाल में इस तरह फंसे कि 1947 तक कि गुलामी तक को भूल गए ।

हमारे पास अकूत धन सम्पदा थी जिसकी रीढ़ है आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत । पहले हमारी रीढ़ तोड़ने का उपाय किया हमारी भाषा को बदल दिया जिससे हम यथार्थ तक न पंहुच पाएं और फिर साथ ही  गलत सिद्धांत को वैध विधि बनाया जब तक हमें सिद्धांत के यथार्थ का ज्ञान होता तब तक उन्होंने हमारे दिमाग को एक ऐसे जहर से दूषित कर दिया कि अज्ञानतावश हम उसे ही अमृत समझ बैठे । उस जहर का नाम है ''पैसा'' जिसमे हम अपनों को भूल गए अपने घर की शांति भूल गए । इसी भौतिकवाद के पाठ को लेकर हम अज्ञानी लोग अपने बच्चों को पढ़ाते आये जिसे आज हमने शिक्षा का समाधान मान लिया । इस तरह हम इस घोर कलयुग के राक्षस का शिकार हो गए और एक बार फिर अंग्रेजों के गुलाम हो गए और ऐसे गुलाम हुए की उस राक्षस को हम गोलियों से भी नहीं मार सकते । इस राक्षस के जन्म से पहले ही करामाती सत्तकर्म ज्ञानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने हमें जगाने का प्रयास ही नहीं किया बल्कि विकल्प भी दिया लेकिन यह हमारी अज्ञानता ही है इस अवसर को खो कर ईश्वर को गलत मान लिया इस कारण समझने में देर हुई ।

मुद्रा और हमारे बीच का जो व्यवहार होना चाहिए वो यह की जिस रुपये को हमे चलाना चाहिए उसे हमारी मूर्खता की वजह से वह रूपया हमें चलाने लगा जिसके फलस्वरूप हम अपने ही मूल्यों (कीमतों) को प्राथमिकता देना भूलते गए  ।
अगर सचमुच में देखा जाय तो अगर मुद्रा न हो तो आधुनिक युग में अब पैमाने का उत्पादन सम्भव नहीं होगा । क्योंकि उसके सम्बंधित भुक्तान तथा मुद्रा का हिसाब किस माध्यम से होगा यही निर्णय करना कठिन होगा जिसके फलस्वरूप लाभ - हानि का निर्णय करना कठिन हो जायेगा मुद्रा का मूल्यांकन करना तो दूर की बात है । ठीक इसी तरह मुद्रा की कमजोरी आधुनिक उत्पादन तंत्र की गाड़ी के पहिये के लिए तेल के समान होने के कारण जिसकी अनुपस्थिति में या उसके तेल की शुद्धता में कमी की पूर्ति (नियंत्रण) के आभाव से उत्पाद का क्रम रुक जाने का भय होता है । 
पहले हमारा भारत बहुत समृद्ध रहा हैयही कारण था की बहुत से विदेशियों ने आ कर देश को लूटा लेकिन इसका कारण हमारी कायरता नहीं बल्कि भारत को लुटे जाने का मात्र कारण यह था कि भारत भौतिक सम्पन्नता की चाह न रख कर धर्म को पकड़े रखा अब इसकी रक्षा व सुरक्षा की जिम्मेवारी हम युवाओं की है ।

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